- आयकर में थोड़ी और कटौती से अर्थव्यवस्था में मांग की कमी दूर होगी: संजय बारू
- टैक्स में बदलाव से चालू खर्चों के लिए ज्यादा पैसा बच सकता है: आशुतोष बिश्नोई
- अपील एमनेस्टी योजना अच्छी है, लेकिन इसकी समय-सीमा नाकाफी: अभिषेक तनेजा
नई दिल्ली. दशक का पहला बजट ऐतिहासिक रहा। 2 घंटे 41 मिनट यानी अब तक के सबसे लंबे बजट भाषण में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने टैक्स स्लैब घटाया, पर कुछ शर्तें भी रखीं। करदाताओं को विकल्प दिया कि वे नई और पुरानी कर व्यवस्था में से चुनाव कर सकते हैं।
बजट पर दैनिक भास्कर ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के प्रेस सलाहकार रहे अर्थशास्त्री संजय बारू, महिंद्रा म्यूचुअल फंड के मैनेजिंग डायरेक्टर अशुतोष बिश्नोई और आईटी एक्सपर्ट व सीए अभिषेक अनेजा से बात की।
पिछली बार से ज्यादा प्रैक्टिकल, होमवर्क किया गया- संजय बारू
अर्थव्यवस्था: संजय बारू ने कहा- यह बजट पिछले बजट से ज्यादा प्रैक्टिकल है। व्यक्तिगत आयकर में थोड़ी और कटौती किए जाने से अर्थव्यवस्था में मांग की कमी दूर होगी। पिछले कई महीने से भारतीय अर्थव्यवस्था इसी समस्या से जूझ रही है। ऑटो सेक्टर में बिक्री में बीते साल में बहुत गिरावट आई। कई और सेक्टर में सुस्ती है।
विकास: मौजूदा कारोबारी साल की दूसरी तिमाही में विकास दर घटकर 4.5% पर आ गई है। सरकार ने विकास दर का अनुमान भी घटाकर 5% कर दिया है। िवत्त मंत्री ने संरचनात्मक तरीकों से विकास में तेजी लाने पर ध्यान दिया है। निश्चित रूप से बजट में काफी होमवर्क किया गया है। विकास दर 6-6.5% पर जाएगी या नहीं यह इस बात पर निर्भर करता है कि वित्त मंत्री ने निवेशकों और उपभोक्ताओं में विश्वास का संचार किया है या नहीं।
टैक्स स्लैब: बारू ने कहा कि टैक्स स्लैब में बदलाव कर व्यक्तिगत करदाताओं को राहत दी है। उन्हें पुराने और नए में से किसी भी स्लैब को अपनाने का विकल्प दिया है। करदाता अपने फायदे के हिसाब से स्लैब चुन सकते हैं। नए टैक्स स्लैब में कई तरह के डिडक्शन के लाभ नहीं मिलेंगे, पुराने स्लैब में ये मिलते रहेंगे।
डिविडेंट देने वाली कंपनियों में निवेश की योजनाएं फायदेमंद होगीं- बिश्नोई
टैक्स स्लैब: अशुतोष बिश्नोई ने कहा, "बजट की खास बात आयकरदाताओं के लिए टैक्स विकल्प और डीडीटी को कंपनी से हटाकर शेयर होल्डर पर ट्रांसफर करना है। टैक्स में किए गए बदलाव से चालू खर्चों के लिए आयकरदाताओं के पास ज्यादा पैसा बच सकता है। निचले आयकर स्लैब में आने वाले लोगों को सबसे ज्यादा फायदा होगा, क्योंकि उन्हें अब विकल्प मुहैया करा दिया गया है। जो करदाता नई कर व्यवस्था का लाभ उठाएंगे, उनको मेरी सलाह है कि अपने हाथ में आने वाले अतिरिक्त धन का इस्तेमाल बेहतर भविष्य के लिए दीर्घकालिक निवेश या म्यूचुअल फंड में कर सकते हैं।'
डीडीटी हटने से फायदा: उन्होंने कहा- डीडीटी को कंपनी से हटाए जाने के कदम का स्वागत करता हूं, क्योंकि डिविडेंट देने वाली कंपनियों में निवेश की योजनाएं अब ज्यादा फायदेमंद होंगी। इसका फायदा निवेशकों को दिया जाएगा, क्योंकि डिविडेंट बढ़ने से उनके निवेश की कीमत भी बढ़ेगी। इस तरह से म्यूचुअल फंड में निवेश करने वाले सभी लोगों के लिए यह काफी फायदेमंद होगा।
एफपीआई: बिश्नोई ने कहा- बाजार के स्तर पर देखें तो विदेशी संस्थागत निवेश (एफपीआई) के जरिए कॉरपोरेट बॉन्ड मार्केट में नकदी बढ़ेगी और इससे मिली पूंजी का लंबे समय तक इस्तेमाल किया जा सकेगा। आधार के जरिए तुरंत पैन जारी करने के प्रस्ताव से म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री में नए निवेशकों को सहूलियत मिलेगी।
विकल्प की बजाय, मौजूदा व्यवस्था में छूट की सीमा बढ़ाना बेहतर होता- अनेजा
टैक्स स्लैब: अभिषेक अनेजा ने कहा- मैं इसे गूगली बजट कहूंगा। बजट भाषण के मुताबिक, इनकम टैक्स की नई व्यवस्था में 80सी के तहत मिलने वाली छूट पाने के लिए की जाने वाली गड़बड़ियों को रोकेगा। (हालांकि इसके लिए यह देखना होगा कि क्या किसी दूसरी कटौती को भी खत्म किया गया है) इससे उन लोगों को फायदा होगा, जो आयकर की धारा 80सी और 80डी के तहत ज्यादा निवेश नहीं करते। दो तरीकों से लोग ज्यादा भ्रमित होंगे और उन्हें पेशेवर की मदद लेनी पड़ सकती है। मेरा मानना है कि दो विकल्प देने के बजाय मौजूदा तरीके में बदलाव कर आयकर छूट की सीमा बढ़ा देना बेहतर होता। मौजूदा तरीके में ही डिडक्शन के तरीके घटाए जा सकते थे। कुछ लोग या तो 80सी या 80डी के तहत निवेश से मिलने वाले फायदों को नहीं समझते या उनके पास निवेश के लिए पर्याप्त रकम ही नहीं होती।
अपील एमनेस्टी: अनेजा का मानना है कि टैक्स पेयर चार्टर बनाया जाना अच्छी बात है, लेकिन यह देखना होगा कि इसे कब और कैसे लागू किया जाता है। अपील एमनेस्टी योजना भी अच्छी है, लेकिन इसके लिए तय समय सीमा नाकाफी है। पिछले कुछ सालों में आयकर विभाग ने करदाताओं के खिलाफ कार्रवाई के दौरान उन पर बड़ी देनदारी निकाल दी और अब सरकार यह योजना लेकर आई है। ऐसा लगता है कि यह सारे कर मूल्यांक उच्चाधिकारियों के निर्देशों पर जानबूझकर किए गए थे।
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